बालक अंसारुल हक की दयालुता की कहानी

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बालक अंसारुल हक की दयालुता की कहानी
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बिहार प्रान्तके बेलवागंजके एक गरीब व्यक्ति के मकान में एक दिन आग लग गयी। उस समय जो लोग उस मकानमें थे, भागकर बाहर निकल आये। बाहर आनेपर उन्हें याद आया कि एक छोटा बच्चा कान में ही रह गया है। वे लोग चाहते थे कि उस शिशु को निकाल लें; किंतु उस समयतक फूसका छप्पर धधक उठा था। मकान चारों ओरसे आगकी लपटोंसे ढक गया था। किसीका साहस उसमें जाकर बच्चेको लानेका नहीं हुआ। बच्चेकी माता तथा उसके सम्बन्धी बाहर खड़े रो रहे थे।

आगकी लपटोंको देखकर वहाँकी पाठशालाके कुछ विद्यार्थी भी दौड़े आये और अग्नि बुझानेका प्रयत्न करने लगे। उनमेंसे एक विद्यार्थी ने जैसे ही सुना कि जलते घरमें एक नन्हा बालक सोता हुआ रह गया है, वैसे ही उसने अपना कुर्ता उतार फेंका और दौड़कर आगकी लपटोंमें होता वह घरमें घुस गया। वह जानता नहीं था कि बच्चा किस स्थानपर है, अतः ढूँढनेमें उसे कुछ मिनट लग गये। बच्चेको गोदमें छिपाये दौड़ता हुआ जब वह निकला, बच्चेकी माताने दौड़कर अपने बच्चेको गोदमें ले लिया।

उस वीर बालक का नाम अन्सारुल हक था, जिसने अपनेको आगकी लपटोंमें डालकर शिशुके प्राण बचाये थे। अन्सारुल हक स्वयं पर्याप्त जल गया था और इसलिये अस्पताल जाकर उसे अपनी चिकित्सा करानी पड़ी; किंतु अपने सत्साहससे उसने एक शिशु के प्राणों के साथ मनुष्यता की रक्षा की। कर्तव्यके लिये प्राण दे सकनेवाला ही तो सच्चा मनुष्य है।

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