काली मिर्ची (black paper) के फायदे और नुकसान एवं विभिन्न जानकारी

0
Contents hide

जानकारी

काली मिर्च से आप सभी परिचित होंगे ही क्योंकि सामान्यतः रसोईघर में मसाले के रूप में इसका प्रयोग होता है। काली मिर्च का उपयोग कई आयुर्वेदिक योगों में घटक द्रव्य के रूप में भी होता है। निरोगधाम में हम पहले भी इस मुद्दे पर चर्चा कर चुके हैं कि आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में उपयोग में आने वाले द्रव्यों के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि से आयुर्वेदिक औषधियां निरन्तर महंगी और सामान्य जन की पहुंच से बाहर होती जा रही है। वैसे तो महंगाई सब तरफ़ बढ़ रही है लेकिन आयुर्वेदिक औषधियों के मामले में घटक द्रव्यों का कृत्रिम अभाव भी उनकी भाव वृद्धि का एक कारण है। परिणाम यह है कि कुछ वर्ष पूर्व 50 से 60 रु. प्रतिकिलो मूल्य मिलने वाली काली मिर्च का भाव आज 400 से 500 रु. प्रतिकिलो तक पहुंच गया है, असगन्ध जैसा महत्वपूर्ण घटक द्रव्य 150 160 रु. प्रतिकिलो के मूल्य तक पहुंच गया है। यहां तक कि लौंग जो कुछ समय पूर्व 200-250 रु. किलो थी आज 400 रु. से ऊपर चली गयी है। कोई भी जड़ी बूटी आज सस्ती नहीं मिल रही है। इसी तरह चांदी, जिसका आयुर्वेदिक योगों में काफी उपयोग होता है, निवेशकों के बढ़ते रुझान से 70 हज़ार रु. से ऊपर चली गयी है जो कुछ समय पूर्व 25 हज़ार से नीचे थी। पता नहीं यह मूल्य वृद्धि कहां जाकर थमेगी। चलिए हम अपने मूल विषय पर लौटते हुए काली मिर्च के गुणधर्म,

काली मिर्च का लगभग 80 प्रतिशत आयुर्वेदिक औषधियों में सहायक द्रव्य के रूप में उपयोग होता है।

काली मिर्ची के अन्य भाषा में नाम

भाषा-भेद से नाम भेद- संस्कृत मरिच, यवनेष्टं हिन्दी- काली मिर्च । मराठी- मिरें। गुजराती- मरि। बंगला मरिच, गोलमरिच । तैलुगु- मरियालु । तामिल- मिलगु। कन्नड़- मनसु । पंजाबी- गोल मिरच सिन्धी- गुल मिरियन । फ़ारसी- फिल फिल स्याह । इंग्लिश- ब्लेक पीपर (Black Peper). लैटिन- पाइपर नाइग्रम (Piper Nigrum )

औषधि सेवन सम्बन्धी सूचनाएं

  • यदि सेवन विधि न बताई गई हो तो इस प्रकार समझें- दवा लेने का समय न बताया हो तो प्रातः काल समझे। जहां औषधि का अंग न बताया हो वहां ‘जड़’ समझना चाहिए। जहां औषधियों का वजन यानी मात्रा के विषय में न बताया हो वहां सबको समभाग (समान वजन) समझना चाहिए। पात्र के विषय में न बताया हो तो मिट्टी का पात्र समझना चाहिए। अनुपान का नाम न बताया हो तो जल के साथ दवा लेना चाहिए।
  • परहेज़ औषधि का नहीं होता बल्कि रोग और रोगी की दशा के अनुसार होता है अतः कोई भी औषधि का सेवन करते समय रोग की वृद्धि रोकने वाला और रोगी की स्थिति को बिगड़ने से रोकने वाला आहार-विहार करते हुए अपथ्य का त्याग और पथ्य का सेवन अवश्य करना चाहिए वरना औषधि का सेवन व्यर्थ हो जाएगा।
  • औषधि का सेवन बताये गये अनुपान के साथ ही लेना चाहिए क्योंकि अनुपान के द्रव्य का संयोग होने पर औषधि के द्रव्यों के गुणों में वृद्धि होती है और परिवर्तन भी होता है जैसे ईसबगोल का सेवन दही के साथ करने से दस्त बन्द होते हैं और जल के साथ लेने से क़ब्ज़ नष्ट हो कर खुलकर दस्त होता है।
  • रस भस्म और विषैले द्रव्यों वाले नुस्खों का प्रयोग अपनी मनमर्जी से नहीं करना चाहिए। किसी कुशल और अनुभवी वैद्य की सलाह के अनुसार ही इनका सेवन करना चाहिए।

त्रिकुट चूर्ण बनाने की विधि

काली मिर्च, सोंठ और पीपल के योग से बना त्रिकुट चूर्ण कई रोगों में लाभकारी तो होता ही है साथ ही इसका उपयोग कई आयुर्वेदिक औषधियों के घटक द्रव्य के रूप में भी होता है। पाचन तन्त्र और श्वसन तन्त्र के लिए विशेष कर लाभदायक इस सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक योग का संक्षिप्त विवरण आपके समक्ष प्रस्तुत है।

घटक द्रव्य- काली मिर्च, सोंठ, पीपल । निर्माण एवं सेवन विधि- काली मिर्च, सोंठ, पीपल 100-100 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण कर लें। इसकी आधा आधा चम्मच सुबह छाछ के साथ लें।

लाभ- इस योग के तीन गुणकारी द्रव्यों को अलग अलग देखें तो सोंठ हमारे शरीर पर कोशिकीय स्तर पर जीर्णोद्धार का कार्य करती है, काली मिर्च आमाशय से अतिरिक्त वायु को हटाती है जिससे आहार का पाचन अच्छा होता है और पीपल पाचन तन्त्र के साथ साथ श्वसन तन्त्र के लिए भी अच्छा कार्य करती है। यह चूर्ण किसी भी प्रकार के उदर रोग में लाभकारी है जैसे अजीर्ण, कब्ज, अतिसार, अफारा, अग्निमांद्य, आदि। यदि भूख लगना बन्द हो गई हो, छाती में जलन, अपचन, पेट का फूलना, क़ब्ज़ रहना आदि कोई भी समस्या में यह चूर्ण लाभ करती है। यह चूर्ण आहार के पाचन के साथ-साथ पोषक तत्वों के अवशोषण में भी सहयोग करता है तथा शरीर की चयापचय प्रक्रिया को ठीक रखता है। दरअसल इसके सेवन से आमाशय में अम्ल और पाचक रसों का साव पर्याप्त मात्रा में होता है। आज के प्रचलित उदर रोग जिसमें आंतों के कार्य अनियमित हो जाते हैं (Irritable Bowel Syndrome) जिसमें पेट का फूलना, पेट दर्द और अनियमित मल त्याग जैसे समस्याएं काफी समय से बनी रहती हैं, इस रोग में यह चूर्ण बहुत लाभकारी है। उदर रोगों के अलावा यह श्वसन तन्त्र सम्बन्धी व्याधियों में भी लाभकारी है। जीर्ण कफ की यह अच्छी औषधि है। यह अतिरिक्त श्लेष्मा को हटाता है। तथा फेफड़ों से कफ बाहर निकालता है जिससे श्वास-कास में लाभ मिलता है। यह शरीर की रोगक्षमता (Immunity) बढ़ाते हुए कई रोगों से शरीर को बचाता है तथा शरीर में उत्पन्न विष तत्वों को शरीर से बाहर करता है। ‘यूषणं दीपनं हन्ति श्वास-कास त्यगामयान् । गुल्म मेह कफ स्थौल्य मेदः श्लीपदपीनसान् ॥ (भावप्रकाश ) के अनुसार यह अग्नि को प्रदीप्त करता है, श्वास, खांसी, त्वचा के रोग, गुल्म, प्रमेह, कफ, स्थूलता, मेद, श्लीपद और पीनस रोग आदि को नष्ट करता है। इसके दुष्प्रभाव नहीं होते अतः लम्बी समयावधि तक सेवन किया जा सकता है। यह चूर्ण बना बनाया बाज़ार में मिलता है।

अपचन और अफारा में काली मिर्च का प्रयोग

काली मिर्च का फाण्ट बना कर पिलावें अथवा काली मिर्च, सोंठ, पीपल व हरड़ सभी 25- 25 ग्राम मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण कर लें। इस चूर्ण की आधा आधा चम्मच मात्रा शहद के साथ देने से अपचन एवं अफारा दूर हो जाते हैं।

हैजा में काली मिर्च का प्रयोग

काली मिर्च चूर्ण और भुनी हींग 1-1 ग्राम, कपूर 2 ग्राम लेकर पहले कपूर व हींग मिला लें फिर उसमें काली मिर्च चूर्ण मिलाकर उसकी 16 गोलियां बाना लें। आधे घण्टे के अन्तर से एक एक गोली देने से हैजे की प्रथमावस्था में लाभ होता है, वमन और दस्त बंद होकर रोग के किटाणुओं का नाश हो जाता है और 4-6 घण्टे में ही रोग का शमन हो जाता है। यदि रोगी को हाथ पैर में ऐंठन आती हो तो प्याज के रस में काली मिर्च का चूर्ण मिला कर मालिश करने से ऐंठन में आराम पड़ता है।

रतौन्धी (night blindness) में काली मिर्च का प्रयोग

इस रोग में रात में दिखाई नहीं देता है। काली मिर्च को दही के साथ पीस कर आंखों में अंजन करने से रतौंधी मिट जाती है।

उदर शूल (abdominal colic) में काली मिर्ची का प्रयोग

अदरक का रस और नींबू का रस मिला कर उसमें एक ग्राम काली मिर्च चूर्ण डाल कर पिलाने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।

मंदागिनी (dyspepsia) में काली मिर्च का प्रयोग

काली मिर्च, सोंठ, पीपल, जीरा, सेन्धा नमक, – सब 25-25 ग्राम मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। इस चूर्ण की आधा-आधा चम्मच मात्रा छाछ के साथ सेवन करने से मन्दाग्नि दूर होकर हाजमा शक्ति बढ़ती है।

जुकाम (coryza) में काली मिर्च का प्रयोग

जुकाम के लिए यह भारत वर्ष की घरेलू औषधि है। इसमें दूध में काली मिर्च मिलाकर गरम कर पिलाया जाता है या काली मिर्च मिलायी हुई चाय दी जाती है। यह नये जुकाम के लिए सौम्य और श्रेष्ठ औषधि है। काली मिर्च एन्टीएलर्जिक औषधि की तरह काम करती है।

बवासीर (piles) में काली मिर्च का प्रयोग

काली मिर्च 25 ग्राम और जीरा 12 ग्राम को मिला कर पीस लें। इस चूर्ण की आधी आधी चम्मच मात्रा शहद या शक्कर के साथ लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।

सूजन (swelling) में काली मिर्ची का सफल प्रयोग

काली मिर्च को पानी में पीस कर सूजन के स्थान पर लगाने से सूजन उतर जाती है।

पीनस(purulent rhinitis) में काली मिर्ची का सफल प्रयोग

आधा चम्मच काली मिर्च चूर्ण को गुड़ एवं दही के साथ खाने से पीनस रोग दूर हो जाता है।

शीत पित्त (urticaria) में काली मिर्च का प्रयोग

शीत पित्त (Urticaria) – काली मिर्च के चूर्ण को घी में मिलाकर खाने और त्वचा पर लगाने से शीत पित्त में लाभ मिलता है।

नकसीर (nasal bleeding) में काली मिर्ची का प्रयोग

नाक खून आने पर काली मिर्च को पीस कर से दही एवं पुराने गुड़ के साथ देने से नाक से गिरने वाला खून बन्द हो जाता है।

दाँतो के दर्द में काली मिर्ची का प्रयोग

काली मिर्च एवं पोस्त दानों को मिला कर पीस लें। इस चूर्ण को गरम पानी में डाल कर कुल्ले करने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है।

फुंसी में काली मिर्ची का प्रयोग

शरीर में कहीं पर भी फुंसी उठते ही काली मिर्च पानी के साथ पत्थर पर घिस कर इस लेप को फुंसी पर लगाने से फुंसी बैठ जाती है।

नेत्ररोग (eye problem) में काली मिर्ची का प्रयोग

आधा ग्राम काली मिर्च चूर्ण को एक चम्मच घी में मिला कर चाटने से अने नेत्ररोग दूर होते हैं।

खाँसी और दमा (bronchitis & asthma)

खांसी और दमा (Bronchitis & Asthma) – काली मिर्च के आधा चम्मच चूर्ण को शहद के साथ चाटने से सदी खांसी, दमा व सीने का दर्द मिटता है तथा फेफड़ों का कफ निकल जाता है।

श्वास कुठार रस को बनाने की विधि

श्वास रोग (Asthma) प्रायः असाध्य माना जाता है किन्तु यह कष्टसाध्य होता है बश्ते इसे जीर्ण रोग का रूप न लेने दिया जाए आकाश में बादल घिर आने, वर्षा होने और शीतल तथा नमीयुक्त वायु चलने पर श्वास सहज ही बढ़ जाता है। श्वास रोग कई प्रकार का होता है। हृदय रोग से उत्पन्न श्वास (Cardiac Asthma), सर्वाङ्शोथ से उत्पन्न श्वास तथा पित्तज श्वास कास के अलावा हर प्रकार के श्वास रोग में श्वास कुठार रस अच्छा लाभ करता है। इस रस की निमार्ण विधि एवं औषधीय उपयोग का विवरण आपके समक्ष प्रस्तुत है।

घटक द्रव्य– काली मिर्च 80 ग्राम, कज्जली, शुद्ध बच्छनाभ, सोहागे का फूला, मैन सिल- सभी 10-10 ग्राम, सोंठ, पीपल- 30 ग्राम।

निर्माण एवं सेवन विधि- कज्जली में बच्छनाभ, सोहागा, मैनसिलको अनुक्रम में मिलाएं। एक एक काली मिर्च डालते जाएं और खरल करते जाएं। अन्त में सोंठ- पीपल के चूर्ण को मिलाकर एक एक रत्ती की गोलियां बना लें। इस रस को नागरबेल के पान के रस में खरल करके गोलियां बनाते हैं। इस रस की 1-2 गोली दिन में दो बार शहद या अदरक के रस के साथ सेवन की जाती है ।

उपयोग– यह रस श्वास, कास, मन्दाग्नि तथा वात-कफ प्रधान रोगों को नष्ट करता है। सन्निपात, मिरगी, मूर्छा, बेहोशी आदि में इसको सुंघाने से रोगी चेतन हो जाता है। वात-कफ प्रधान शिरोरोग में यह बहुत शीघ्र लाभ करता है। आधा सीसी, जुकाम, स्वरभेद, क्षयरोग आदि में भी इससे अच्छा लाभ होता है। प्रतिश्याय होकर श्वासनलिकाओं में कफावरोध से श्वास रोग उत्पन्न होता है। बार-बार खांसी आती है पर कफ बाहर नहीं निकलता। बहुत से लोगों की प्रकृति ऐसी हो जाती है कि जरा सी ठण्डी हवा या शीत लगने से, वर्षा ऋतु या शीत ऋतु के प्रारम्भ होने पर, सूर्य की प्रचण्ड गर्मी अथवा खटाई या मधुर आहारीय पदार्थ के सेवन से ही श्वास रोग उत्पन्न हो जाता है। रोगी बिस्तर पर बैठा रहता है क्योंकि लेटने से श्वास लेने में तकलीफ़ होती है। बारिश होने तथा हवा में आद्रता बढ़ने से भी श्वास रोग की उत्पत्ति होती है। इन सभी श्वास रोगों में यह श्वास कुठार रस बहुत लाभदायक होता है। यह बना बनाया बाज़ार में मिलता है।

सावधानी– पित्तज श्वास कास में इस रस का उपयोग नहीं करना चाहिए। कभी कुछ रोगियों में इसके सेवन से उष्णता बढ़ जाती है। ऐसे में प्रवालपिष्ठी और कभी गिलोय सत्व या दाड़िमावलेह अथवा मिश्री मिले दूध का सेवन करना चाहिए।

Previous articleवृहत वात चिंतामणि रस बनाने की विधि
Next articleActor Katrina Kaif tests positive for #COVID19
Alok kumar is an Indian content creator who is currently working with many world wide known bloggers to help theme deliver the very useful and relevant content with simplest ways possible to their visitors.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here