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एक शहरके स्कूलमें ऐसा नियम था कि कोई बालक कुछ अपराध करता था तो गुरुजी उसके वर्ग के दूसरे बालकोंको पंच बनाकर उनके द्वारा ही फैसला कराते थे। और यदि अपराध साबित होता तो उसे सिर्फ रोटी-पानी देकर एक अँधेरी कोठरीमें डाल देते थे। साथ ही यह भी नियम था कि यदि कोई लड़का उस अपराध के बदले कैदखाने में रहना चाहे तो अपराधी लड़केको छोड़कर उस दूसरे लड़केको कैदमें डाल दिया जाता था।
उस स्कूलमें एक शरारती लड़का सदा ही ऊधम मचाता और कैद भोगता था । गुरुजी भी उससे तंग आ गये थे गुरुजीने तो अब यहाँतक कह दिया था कि ‘यदि तुम अब ऊधम मचाओगे तो तुमको सदाके लिये स्कूलसे निकाल दिया जायगा।’
इतना होनेपर भी एक दिन उस ऊधमी लड़केने एक दूसरे लड़के को मारा। पंचों ने फैसला देते हुए उसे अपराधी ठहराया। फिर वर्गमें पूछा गया कि ‘उसके बदले में कोई कैदमें जानेके लिये तैयार है ?’ सब छात्रोंने कहा-‘वह बहुत ही खराब लड़का है, उसके ऊपर हम दया नहीं करेंगे। उस समय वह लड़का, जिसको ऊधमी लड़केने मारा था, सामने आया। उसके मनमें दया आ गयी और वह बोला-‘गुरुजी ! मैं उसके बदले कैदखाने जानेके लिये तैयार हूँ !’
यह सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। इसके बाद उसे कैदखानेमें डाल दिया गया और वह आदमी लड़का छोड़ दिया गया। इससे वह विचार करने लगा कि मैंने जिसे मारा था, उसीने मुझे छुड़ाया। अहा ! वह कैसा अच्छा लड़का है
उसके मनमें इस विषयमें तरह-तरहके विचार उठे और वह पश्चात्ताप करने लगा। अन्तमें उसने गुरुजीसे अपने अपराध के लिये क्षमा माँगी और उस लड़केको छोड़नेके लिये प्रार्थना की तथा वचन दिया कि ‘मैं अब कभी कोई बुरा काम नहीं करूँगा।’ उसके बाद उसने फिर कभी कोई ऐसा अपराध नहीं किया !
इससे यह शिक्षा मिलती है कि बुरा करनेवालेका हित करके उसे सुधारना चाहिये, न कि बुरी बात कहकर या मारकर अथवा और किसी तरह बदला लेकर। सच्ची क्षमा वही है, जिससे शत्रुका भी हित हो। उपर्युक्त लड़का ऐसा ही सच्चा क्षमाशील था।
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