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कलकत्तेके एक स्कूल में दो भले विद्यार्थी पढ़ते थे। प्रतिवर्ष उनका पहला और दूसरा नम्बर आता था। पहले विद्यार्थी की माँ बीमार पड़ी और मर गयी। इससे वह लड़का दो महीने स्कूल नहीं जा सका। लोगोंने सोचा कि इस बार परीक्षा में दूसरे विद्यार्थी का पहला नंबर आएगा। पर जब परीक्षा का फल निकला, तब पता लगा कि जो दो महीने स्कूल नहीं गया था,
इस बार भी उसका पहला नंबर आया है । इससे शिक्षकको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने दोनों लड़कोंकी उत्तर-पुस्तकें देखें तो पता चला कि दूसरे विद्यार्थी ने बहुत-से प्रश्नों का पूरा उत्तर नहीं लिखा है।
वे प्रश्न इतने सरल थे कि उसका उत्तर न आता हो , ऐसी बात नहीं थी। इसलिये शिक्षक ने उस विद्यार्थी एकान्तमें पूछा तो उसने बतलाया कि ‘वह लड़का मेरी अपेक्षा कहीं अधिक बुद्धिमान् है। उसकी माँ मर गयी। इससे उसकी पढ़ाईमें विघ्न पड़ा और मुझे पहला नंबर मिलनेकी स्थिति हो-सी गयी, पर यह मुझे ठीक न लगा। जानबूझकर मैंने अधूरा उत्तर लिखा है। मेरी तो माँ है, इस बेचारेकी माँ नहीं। आप कृपया इस बातको अपनेतक ही रखें।’
शिक्षकको उस विद्यार्थीकी दया और उदारताको देखकर बहुत ही संतोष हुआ और उसने कहा-‘सबसे बड़ी परीक्षा, जो महत्त्वकी परीक्षा है, उसमें तुम्हारा सबसे पहला नंबर आया है। इस परीक्षा के सामने स्कूल की परीक्षा का कोई मूल्य ही नहीं है।
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