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लगभग नौ सौ वर्ष पहलेकी बात है, राजा भीमदेव गुजरात में राज्य करते थे। उनके एक लड़का था। नाम था मूलराज । लड़का होनहार था और था बड़ा दयालु । एक साल गुजरात में बरसात नहीं हुई। खेत सूख गये। एक गाँव के लोग राजा का लगान नहीं दे सके। राजाके सिपाहियोंने गाँवमें जाकर उन लोगोंके घरों में जो कुछ था, सब जप्त करके ले लिया और उनको भी साथ लाकर हाजिर किया। राजकुमार मूलराज पास ही खेल रहा था। किसान बेचारे दुःखी थे और आपसमें अपनी बुरी हालत की चर्चा कर रहे थे। राजकुमारने उनकी सारी बातें सुनीं। उनका दुःख जानकर मूलराजकी आँखोंसे आँसू बहने लगे। मूलराजने उनका दुःख दूर करनेका निश्चय किया।
उन दिनों राजकुमार घुड़सवारी की कला सीख रहा था। राजाने कहा था, ‘तुम अच्छी तरह सीख लोगे, तब तुम्हें इनाम दिया जायगा।’ मूलराजने अभ्यास करके घुड़सवारी की कला सीख ली थी। आज पिता को अपनी कला दिखाई। राजाने प्रसन्न होकर कहा-‘बेटा ! मैं बड़ा प्रसन्न हुआ हूँ, बोलो, क्या इनाम चाहते हो ?’ मूलराजने कहा-‘पिताजी ! इन बेचारे गरीबोंकी जप्त की हुई चीजें वापस लौटा दीजिये और इन्हें जानेकी आज्ञा दीजिए। मूलराजकी बात सुनकर राजाको बड़ी प्रसन्नता हुई। उनकी आँखोंमें हर्षके आँसू छलक आये। फिर उन्होंने कहा-‘बेटा ! तूने अपने लिये तो कुछ नहीं माँगा, कुछ तो माँग।’ इसपर मूलराज बोला-‘पिताजी ! आप प्रसन्न हैं तो मुझे यह दीजिये कि अब यदि किसी साल फसल न हो तो उस साल लगान वसूल ही न किया जाय, ऐसा नियम बना दें, इससे मेरी आत्माको बड़ा सुख होगा।
राजाने ऐसा ही किया, किसानों को जब्त की हुई चीजें लौटा दीं और भविष्यके लिये फसल न होनेके दिनोंमें लगान न लेनेका नियम बना दिया। किसान बड़ी प्रसन्नता आशीष देते हुए अपने घर को लौट गये।
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