
13 सितंबर 2020 दिन रविवार*
इंदिरा एकादशी को परिवर्तनीय एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु शयन करते हुए करवट लेते हैं इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है पदमा एकादशी के नाम से भी इसे जाना जाता है इस व्रत में विष्णु भगवान की वामन अवतार की पूजा करने से एक यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और समस्त प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं देवी लक्ष्मी का पूजन भी इस दिन किया जाता है
इंदिरा एकादशी, परिवर्तिनी एकादशी की कथा
कहा जाता है महाभारत के समय में महाराजा पांडु के पुत्र अर्जुन की विनती करने पर भगवान श्री कृष्ण जब इस व्रत का महत्व बताते हैं तब वह कहते हैं कि इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है आगे भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को परिवर्तनीय एकादशी की कथा सुनाते हैं
त्रेता युग में बलि नाम का एक असुर राजा रहता था परंतु वह दानी सत्य बोलने वाला और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था बह सदैव धार्मिक कार्य किया करता था उसने अपनी भक्ति के प्रभाव से इंद्रासन प्राप्त कर लिया था देवताओं के राजा इंद्र और अन्य देव इससे डरकर भगवान विष्णु के पास गए और अपनी रक्षा की प्रार्थना करने लगे इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और एक ब्राम्हण बालक के रूप में राजा बलि के पास गए राजा बलि के पास जाकर उन्होंने राजा बलि से तीन पग भूमि दान करने को कहा ।
और कहा कि इस दान से तुम्हें तीन लोक के दान के बराबर फल प्राप्त होगा राजा बलि ने ब्राम्हण बालक की प्रार्थना को स्वीकार कर भूमि दान देने को तैयार हो गए और दान का संकल्प लिया जैसे ही राजा बलि ने दान का संकल्प लिया वैसे ही बालक ने विराट रूप धारण कर लिया और उन्होंने एक पाव से पृथ्वी दूसरे दूसरे पांव की एडी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया इसके बाद तीसरी पांव के लिए जगह नहीं थी तब राजा बलि ने अपना सिर आगे करते हुए कहा कि आप तीसरा पैर अपना मेरे सर पर रखिए इस प्रकार राजा बलि की बचन की प्रतिबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया और भगवान बामन ने कहा कि मै सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा