अगर आप दुख पा रहे हैं तो समझ लें कि आप प्रकृति के प्रतिकूल चल रहे हैं ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रकृति के प्रतिकूल चलने की दो उपाय हैं लेकिन उसके अनुकूल होने का एक ही उपाय हैं और वह है संयम जैसे हमारे शरीर के लिए भोजन आवश्यक है अब आप दो ढंग से शरीर को नुक़सान पहुँचा सकते हैं पहला इतना अधिक भोजन ग्रहण कर लें कि शरीर के लिए उसे झेलना मुश्किल हो जाए और दुख शुरू हो गया है दूसरा बिलकुल ही भोजन न लें भूखे रह जाए तो भी दुख शुरू हो जाएगा
संयम क्या है और उसके क्या लाभ होते हैं
दरअसल मन की प्रवृत्ति ही ऐसी है कि एक अति से दूसरी अति पर चले जाने में ञ्से
सुविधा रहती है और दोनों अतियां प्रकृति के प्रतिकूल होने के दो उपाय हैं। यही कारण है कि
अधिक भोजन करने वाले लोग अक़्सर उपवास करने को राजी हो जाते हैं। फिर अनाहार पर तो
उसे ही उतरना पड़ता है जिसने अति आहार किया हो क्योंकि जिस व्यक्ति ने सम्यक भोजन लिया
हो, जिसने उतना ही भोजन किया हो जितनी शरीर की आवश्यकता थी, वह उपवास की मूढ़ता
में पड़ेगा ही क्यों ? यदि हम अति भोजन करने वाले व्यक्ति को कहें कि कम मात्रा में भोजन करो
तो वह कहेगा- यह जरा कठिन है, हां बिलकुल ही न करें यह हो सकता है। जैसे कोई व्यक्ति
सिगरेट पीने का आदी है और उससे आप कहें कि दिनभर में सिर्फ़ पांच सिगरेट पिओ तो वह
_कहेगा- यह जरा मुश्किल है हां दिन भर में एक भी न पिऊं यह कर सकता हूं। कारण यह है कि
मनुष्य को अति की आदत है- या तो पूरे दिन पिऊंगा या फिर बिलकुल भी नहीं पिऊंगा । इन दोनों
में से चुनाव आसान है लेकिन मध्य में रुकना कठिन है और मध्य में रुकने का मतलब है कि आप
प्रकृति के अनुकूल होना शुरू हो गए क्योंकि प्रकृति यानी मध्य, संतुलन, संयम
संयम का वास्तविक अर्थ क्या है ?
समस्या यह है कि हमने संयम शब्द के अर्थ का ही अनर्थ कर दिया है। संयम से हमारा मतलब
होता है दूसरी अति। अगर कोई व्यक्ति उपवास करता है तो हम उसे बड़ा संयमी कहते हैं जबकि
वह उतना ही असंयमी होता है जितना अधिक भोजन करने वाला असंयमी होता है। संयम का सही
अर्थ है- सन्तुलित, बीच में, न इस तरफ़ न उस तरफ़ मध्य में जो है वह संयम में है।