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अब्राहम लिंकन की दयालुता
एक दिन अब्राहम लिंकन अपने मित्रों के साथ शामको टहलकर घर लौट रहे । उन्होंने देखा कि सामनेसे एक घोड़ा आ रहा है। घोड़ेकी पीठपर जीन कसी थी, लेकिन कोई सवार उसपर नहीं था। घोड़े को देखते ही इब्राहिमने कहा-‘यह
किसका घोड़ा है, इसका सवार कहाँ गया ?’ मित्रोंने कहा-‘किसी शराबी का होगा। वह कहीं नशेमें
बेसुध पड़ा होगा।’
इब्राहिम बोला-‘उसे ढूँढ़ना चाहिये।’ मित्र झल्लाये-‘अँधेरा हो रहा है और तुम्हें एक शराबी को
ढूँढ़नेकी पड़ी है ?
लेकिन बचपनसे ही जिसे जो स्वभाव पड़ा हो, उसे वह छोड़ नहीं सकता। इब्राहिम बहुत छोटेपनसे अत्यन्त दयालु था। किसी व्यक्तिको संकटमें पड़े देखकर उससे सहायता किये बिना रहा नहीं जाता था। उसने कहा-‘घोड़े का सवार पता नहीं किस कष्टमें हो । वह शराबी भी हो तो क्या हुआ। हमें उसके शराबीपन से क्या लेना-देना है। हमें तो एक ऐसे मनुष्य की सहायता करनी है, जिसे हमारी सहायताकी इस समय बहुत अधिक आवश्यकता है। मैं तो उसे ढूँढ़ने जाता हूँ । मनुष्य को मनुष्य की सहायता करनी ही चाहिये।’ मित्र बिगड़कर बोले-‘तुम अकेले ही बड़े मनुष्य 1. हमलोग-जैसे सब मनुष्य नहीं, पशु हैं। तुम अपनी मनुष्यता अपने पास रखो।
मित्र अपने-अपने घर चले गये; किंतु अब्राहम लिंकन अकेला ही घोड़े के सवार को ढूंढने चल पड़ा। सचमुच उसे रास्तेके किनारे बेहोश पड़ा एक शराबी ही मिला। वर का शराब पीये था कि बहुत हिलाने-डुलानेपर भी होशमें नहीं आता था। इब्राहिम उसे उठाकर घर ले आया। किसी गरीब मजदूर का पन्द्रह बरसका लड़का एक गधे, दुर्गन्धित शराबी को घर लाद | लाये तो घरके लोग उसपर बिगड़ेंगे नहीं ? लेकिन इब्राहिमके लिये यह नयी बात नहीं थी। उसकी बहन जब बिगड़ने लगी तो वह बोला-‘बहिन ! मुझपर बिगड़ो मत । यह भी मनुष्य है और इसकी सेवा करना हमारा कर्तव्य है।
इब्राहिमने उस शराबी को नहलाया, उसके कपड़े बदले। होशमें आनेपर उसे भोजन दिया। सबेरा होनेपर वह शराबी वहाँसे अपने घर गया।
यही अब्राहम लिंकन अपने सद्गुणोंके कारण आगे जाकर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति हुआ। अब भी वहाँके लोग ‘पिता लिंकन’ कहकर उसका नाम बड़ी श्रद्धासे लेते हैं।
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