मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के गुण और चरित्र

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के गुण और चरित्र
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जिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी के नाम, रूप, गुण, लीला, प्रेम और प्रभावकी अमृतमयी कथाओंका श्रवण पठन और मनन ही परम कल्याण करनेवाला है, उन प्रभुके स्वरूपको लक्ष्यमें रखकर, उनके गुण और चरित्र को सर्वथा आदर्श मानकर और उनके वचनोंको परमधर्म समझकर जो मनुष्य तदनुसार आचरण करता है उसकी तो बात ही क्या है ! ऐसे पुरुषके दर्शन, स्पर्श, भाषण आदिका सौभाग्य जिस मनुष्य को प्राप्त है, वह भी अत्यन्त धन्य है !

कुछ भाई कहा करते हैं कि हम भगवान्के नामका जप बहुत दिनोंसे करते हैं, परन्तु जितना लाभ बतलाया जाता है, उतना हमें नहीं हुआ। इसका उत्तर यह है कि भगवान के नाम की महिमा तो इतनी अपार है कि उसका जितना गान किया जाय उतना ही थोड़ा है। नाम-जप करनेवालोंको लाभ नहीं दीखता, इसमें प्रधान कारण है दस नामापराधोंको छोड़कर जप न करना । दस* अपराधोंका त्याग करके जप करनेपर नाम-जपका शास्त्रवर्णित फल अवश्य प्राप्त हो सकता है। दस अपराध का सर्वथा त्यागकर नाम-जप करनेवालेको प्रत्यक्ष महान् फल प्राप्त होनेमें तो सन्देह ही क्या है; केवल श्रद्धा और प्रेम-इन दो बातोंपर खयाल रखकर जो अर्थसहित नामका जप करता है, उसे भी प्रत्यक्ष परमानन्दकी प्राप्ति बहुत शीघ्र हो सकती है। नाम-जपके साथ-साथ परमात्माके अमृतमय स्वरूपका ध्यान होते रहनेसे क्षण-क्षणमें उनके दिव्य गुण और प्रभावों की स्मृति होती है और वह स्मृति अपूर्व प्रेम और आनन्दको उत्पन्न करती है। यदि यह कहा जाय कि रामचरितमानस नाम-महिमामें यह कहा गया है

भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

-फिर श्रद्धा सहित नाम जपनेसे ही फल हो, ऐसे ही जपनेसे फल न हो, यह बात कैसे हो सकती है ? तो इसका उत्तर यह है कि ‘भाव-कुभाव’ किसी प्रकार भी नाम-जपसे दसों दिशाओंमें कल्याण होता है, इस बातपर तो श्रद्धा होनी ही चाहिये। इसपर भी श्रद्धा न हो तब वैसा फल क्योंकर हो सकता है ? इसपर यदि कोई कहे कि ‘विचारद्वारा तो हम श्रद्धा करना चाहते हैं, परन्तु मन इसे स्वीकार नहीं करता; इसके लिये क्या करें?’ तो इसका उत्तर यह है कि बुद्धिके विचारसे विश्वास करके ही नाम-जप करते रहना चाहिये। भगवान पर विश्वास होनेके कारण तथा नाम-जपके प्रभावसे आगे चलकर पूर्ण श्रद्धा और प्रेम आप ही प्राप्त हो सकते हैं। परन्तु यदि अर्थसहित जप किया जाय तो और भी शीघ्र परमानन्दकी प्राप्ति हो सकती है।

बहुत-से भाई कहते हैं कि ‘हमलोग वर्षों से मन्दिरों में भगवान के दर्शन करने जाते हैं, परन्तु हमें विशेष कोई लाभ नहीं हुआ—इसका क्या कारण है?’ तो इसका उत्तर यह है कि विशेष लाभ न होनेमें एक कारण तो है श्रद्धा और प्रेम की कमी तथा दूसरा कारण है भगवान्के विग्रह-दर्शनका रहस्य न जानना । मंदिर में भगवान के दर्शन का रहस्य है-उनके रूप, लावण्य, गुण, प्रभाव और चित्रकला स्मरण-मनन करके उनके चरणोंमें अपनेको अर्पित कर देना । परन्तु ऐसा नहीं होता, इसका कारण रहस्य और प्रभाव जाननेकी त्रुटि ही है। मन्दिरमें जाकर भगवान्के स्वरूप और गुणोंका स्मरण करना चाहिये और

भगवान से प्रार्थना करनी चाहिये, जिससे उनके मधुर स्वरूपका चिन्तन सदा बना रहे और उनकी आदर्श लीला तथा आज्ञाके अनुसार आचरण होता रहे। जो ऐसा करते हैं, उन्हें भगवत्कृपासे बहुत ही शीघ्र प्रत्यक्ष शान्तिकी प्राप्ति होती है। देह-त्यागके बाद परमगति मिलने में तो सन्देह ही क्या है –

श्रीभगवान्के अनन्त गुण हैं, उनका वर्णन कोई नहीं कर सकता। वे भगवान जीवों पर दया करके अवतार ग्रहण करते हैं और ऐसी लीला करते हैं जिसके श्रवण, गायन और अनुकरणसे जीवोंका परम कल्याण होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्रजी ऐसे ही परम दयालु अवतार हैं। इनके गुण, प्रभाव, आचरण, लीला आदिकी महिमा शेष, महेश, गणेश और सरस्वती भी नहीं गा सकते; तब मुझ-सरीखा एक साधारण मनुष्य तो क्या कह सकता है। तथापि जिन सज्जन महापुरुषों ने अपनी वाणीको पवित्र करनेके लिये महाराजके कुछ गुण शास्त्रों में गाये हैं, उन्हींके आधार बलपर बालककी भाँति मैं भी कुछ कहनेकी चेष्टा करता हूँ।

भगवान श्री रामचन्द्रजी के गुण और चरित्र परम आदर्श थे और उनका इतना प्रभाव था कि जिसकी तुलना नहीं हो सकती। उनकी अपनी तो बात ही क्या है, उनके गुणों और चरित्रोंका प्रभाव उनके शासनकालमें सारी प्रजापर ऐसा विलक्षण पड़ा कि रामराज्य में त्रेता युग सतयुग से भी बढ़कर हो गया। रामराज्य का वर्णन में आता है

सब लोग अपने-अपने वर्णाश्रम के अनुकूल वेद मार्ग पर चलते हैं और सुख पाते हैं। भय, शोक, रोग तथा दैहिक, दैविक और भौतिक ताप कहीं नहीं हैं। राग-द्वेष, काम-क्रोध, लोभ-मोह, झूट-कपट, प्रमाद-आलस्य आदि दुर्गुण देखनेको भी नहीं मिलते। सब लोग परस्पर प्रेम करते हैं और स्वधर्ममें दृढ़ हैं। धर्म के चारों चरणों-सत्य, शौच, दया और दानसे जगत् परिपूर्ण है । स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। स्त्री-पुरुष सभी राम भक्त हैं और सभी परमगतिके अधिकारी है। प्रजामें न छोटी उम्र में किसीकी मृत्यु होती है, न कोई पीड़ा है; सभी सुन्दर और नीरोग हैं। दख्धि, दुःखी, दीन और मूर्ख कोई भी नहीं है। सभी नर-नारी दम्भरहित, धर्मपरायण, अहिंसापरायण, पुण्यात्मा, चतुर, गुणवान्, गुणोंका आदर करनेवाले, पण्डित, ज्ञानी और कृतज्ञ हैं

वर्णाश्रम निज निज धरम निरत वेद पथ लोग।
चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग ।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा ।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ॥
चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरी रहा सपनेहुँ अघ नहीं॥
राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी॥
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥
नहिं दरिद्र कोठ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छनहीना ॥
सब निर्दभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी ॥
सब गुनग्य पंडित सब ज्ञानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी ॥

सभी उदार, परोपकारी, ब्राह्मणों के सेवक और तन, मन, वचनसे एकपत्नीव्रती हैं। स्त्रियां सभी पतिव्रता हैं ईश्वरकी भक्ति और धर्ममें सभी नर-नारी ऐसे संलग्न है मानो भक्ति और धर्म साक्षात् मूर्तिमान् होकर उनमें निवास कर रहे हों। पशु-पक्षी सभी सुखी और सुन्दर हैं। भूमि सदा हरी-भरी और वृक्षादि सदा फूले-फले रहते हैं। सूर्य-चन्द्रमादि देवता बिना ही माँगे समस्त सुखदायी वस्तुएँ प्रदान करते हैं। सारे देश में सुख-संपत्ति का साम्राज्य छाया हुआ है। श्री सीताजी और तीनों भाई तथा सारी प्रजा श्रीराम की सेवा में ही अपना सौभाग्य मानते हैं और श्री राम सदा उनके हितमें लगे रहते हैं। रामराज्य की यह व्यवस्था महान् आदर्श है। आज भी संसारमें जब कोई किसी राज्यकी प्रशंसा करता है या महान् आदर्श राज्यकी बात कहता है तो सबसे ऊँची प्रशंसामें वह यही कहता है कि बस, वहाँ तो ‘रामराज्य’ है। जिनके गुणोंसे प्रभावित राज्यमें प्रजा ऐसी हो, उनके गुण और चरित्र कैसे होंगे, इसका अनुमान करते ही हृदय भक्ति से गद्गद हो उठता है भगवान के अनंत गुणों और चरित्रोंका जरा-सा भी स्मरण-मनन महान्

कल्याणकारी और परम पावन है, इसी खयालसे यहाँ उनके कुछ गुणोंका बहुत ही संक्षेपमें वर्णन किया जाता है

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