श्रीसीतारामाभ्यां नमः
विनय-पत्रिका
राग बिलावल
श्री गणेश-स्तुति
गाइये गनपति जगबंदन । संकर-सुवन भवानी-नंदन ॥ १ ॥
सिद्धि-सदन, गज-बदन, विनायक। कृपा-सिंधु, सुंदर, सब-लायक ॥२॥
मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता । बिद्या-बारिधि, बुद्धि-बिधाता ॥ ३॥
मांगत तुलसीदास कर जोरे। बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥४ ॥
गणेश-स्तुति भावार्थ– सम्पूर्ण जगत्के वन्दनीय, गणोंके स्वामी श्री गणेश का गुणगान कीजिये, जो शिव-पार्वतीके पुत्र और उनको प्रसन्न करनेवाले हैं ॥ १ ॥ जो सिद्धियों के स्थान हैं, जिनका हाथीका-सा मुख है, जो समस्त विघ्रोंके नायक हैं यानी विघ्नोंको हटानेवाले हैं, कृपाके समुद्र हैं, सुन्दर हैं, सब प्रकारसे योग्य हैं ॥ २॥ जिन्हें लड्डू बहुत प्रिय है, जो आनन्द और कल्याणको देनेवाले हैं, विद्याके अथाह सागर हैं, बुद्धिके विधाता हैं ॥ ३ ॥ ऐसे श्री गणेश जी से यह तुलसीदास हाथ जोड़कर केवल यही वर माँगता है कि मेरे मनमन्दिरमें श्री सीताराम जी सदा निवास करें ॥४॥