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काली मिर्च से आप सभी परिचित होंगे ही क्योंकि सामान्यतः रसोईघर में मसाले के रूप में इसका प्रयोग होता है। काली मिर्च का उपयोग कई आयुर्वेदिक योगों में घटक द्रव्य के रूप में भी होता है। निरोगधाम में हम पहले भी इस मुद्दे पर चर्चा कर चुके हैं कि आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में उपयोग में आने वाले द्रव्यों के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि से आयुर्वेदिक औषधियां निरन्तर महंगी और सामान्य जन की पहुंच से बाहर होती जा रही है। वैसे तो महंगाई सब तरफ़ बढ़ रही है लेकिन आयुर्वेदिक औषधियों के मामले में घटक द्रव्यों का कृत्रिम अभाव भी उनकी भाव वृद्धि का एक कारण है। परिणाम यह है कि कुछ वर्ष पूर्व 50 से 60 रु. प्रतिकिलो मूल्य मिलने वाली काली मिर्च का भाव आज 400 से 500 रु. प्रतिकिलो तक पहुंच गया है, असगन्ध जैसा महत्वपूर्ण घटक द्रव्य 150 160 रु. प्रतिकिलो के मूल्य तक पहुंच गया है। यहां तक कि लौंग जो कुछ समय पूर्व 200-250 रु. किलो थी आज 400 रु. से ऊपर चली गयी है। कोई भी जड़ी बूटी आज सस्ती नहीं मिल रही है। इसी तरह चांदी, जिसका आयुर्वेदिक योगों में काफी उपयोग होता है, निवेशकों के बढ़ते रुझान से 70 हज़ार रु. से ऊपर चली गयी है जो कुछ समय पूर्व 25 हज़ार से नीचे थी। पता नहीं यह मूल्य वृद्धि कहां जाकर थमेगी। चलिए हम अपने मूल विषय पर लौटते हुए काली मिर्च के गुणधर्म,