जाँचिये गिरिजापति कासी। जासु भवन अनिमादिक दासी ॥१॥
औढर-दानि द्रवत पुनि थोरें। सकत न देखि दीन करजोरें ॥२॥
सुख-संपति, मति-सुगति सुहाई। सकल सुलभ संकर-सेवकाई ॥३॥
गये सरन आरती कै लीन्हे। निरखि निहाल निमिष महुँ कीन्ह ॥४॥
तुलसीदास जातक जस गावै । बिमल भगति रघुपति को पावै ॥५॥
भावार्थ-पार्वती पति शिवजी से ही याचना करनी चाहिए, जिनका घर काशी है और अणिमा, गरिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व नामक आठों सिद्धियाँ जिनकी दासी हैं ॥१॥ शिवाजी महाराज औढरदानी हैं, थोड़ी-सी सेवासे ही पिघल जाते हैं । वह दीनोंको हाथ जोड़े खड़ा नहीं देख सकते, उनकी कामना बहुत शीघ्र पूरी कर देते हैं ॥ २ ॥ शंकरकी सेवासे सुख, सम्पत्ति, सुबुद्धि और उत्तम गति आदि सभी पदार्थ सुलभ हो जाते है ॥ ३ ॥ जो आतुर जीव उनकी शरण गये, उन्हें शिवजी ने तुरंत अपना लिया और देखते ही पलभरमें सबको निहाल कर दिया ॥ ४ ॥भिखारी तुलसीदास भी यश गाता है, इसे भी रामकी निर्मल भक्तिकी भीख मिले !॥ ५ ॥