वृहत वात चिंतामणि रस बनाने की विधि

0

वात कुपित होने से शरीर में कई प्रकार के रोग और कष्ट पैदा होते हैं । वात कुपित होने के कई कारण होते हैं। कुछ कारण आगन्तुक होते हैं और कुछ कारण निजी होते हैं। आयुर्वेद शास्त्र ने वात प्रकोप का शमन करने वाले एक से बढ़ कर उत्तम योग प्रस्तुत किये हैं। उन्हीं योगों में से योग है वृहत वात चिंतामणि रस। एक उत्तम

घटक द्रव्य- स्वर्ण भस्म 1 ग्राम, चांदी भस्म 2 ग्राम, अभ्रक भस्म 2 ग्राम, मोती भस्म 3 ग्राम, प्रवाल भस्म 3 ग्राम, लौह भस्म 5 ग्राम, रस सिन्दूर 7 ग्राम।

निर्माण विधि- पहले रस सिन्दूर को खूब अच्छी तरह महीन पीस लें फिर सभी द्रव्य मिला कर ग्वारपाठे के रस में घुटाई करके 1-1 रत्ती की गोलियां बना कर, सुखा लें और शीशी में भर लें।

मात्रा और सेवन विधि-1-1 गोली दिन में 3 या 4 बार आवश्यकता के अनुसार शहद के साथ लेना चाहिए।

लाभ- यह योग वात प्रकोप का शमन कर वातजन्य कष्टों और व्याधियों को दूर करने के अलावा और भी लाभ करता है। यह पित्त प्रधान वात विकार की उत्तम औषधि है जो तत्काल असर दिखाती है। यह योग नये और पुराने, दोनों प्रकार के रोगों पर विशेष रूप से बराबर लाभ करता है। वात प्रकोप को शान्त करने के अलावा यह शरीर में चुस्ती फुर्ती और शक्ति पैदा करता है। वात रोगों को नष्ट करने की क्षमता होने के कारण आयुर्वेद ने इस योग की बहुत प्रशंसा की है। नींद न आना, हिस्टीरिया और मस्तिष्क को ज्ञान वाहिनी नाड़ियों के दोष से उत्पन्न होने वाली बीमारी में इसके सेवन से बड़ा लाभ होता है। जब वात प्रकोप के कारण हृदय में घबराहट, बेचैनी, मस्तिष्क में गर्मी और मुंह में छाले हों तब पित्त-वर्द्धक ताम्र भस्म, मल्ल या कुचला प्रदान औषधि के सेवन से लाभ नहीं होता। ऐसी स्थिति में इस योग के सेवन से लाभ होता है। प्रसव के बाद आई कमज़ोरी को दूर  करने और सूतिका रोग नष्ट करने में यह योग शीघ लाभ करता है। वृद्धावस्था में वात प्रकोप होने और शरीर के कमजोर होने पर इस योग के सेवन से स्त्री-पुरुषों को जादू की तरह लाभ होता है और शक्ति प्राप्त होती है। बैठे-बैठे दिन भर काम करने वाले व्यापारी, क्लर्क आफिस या दूकान में काम करने वाले व्यक्ति आमतौर पर कमर व पीठ के दर्द से पीड़ित रहते हैं। ऐसे पीड़ितों के लिए यह योग कमर की वात नाड़ियों पर काम करके कटिवात का शमन करता है जिससे दर्द होना बन्द हो जाता है।

वात जन्य व्याधियों के अलावा यह योग अन्य व्याधियों को भी दूर करता है। हृदय रोग में अर्जुन छाल का चूर्ण एक चम्मच और इस योग का सेवन करने से उत्तम लाभ होता है। कठिन वात रोग जैसे पक्षाघात (लकवा), अर्दित, धनुर्वात, अपतानक आदि में भी इस योग का सेवन, रसोन सिद्ध घृत के साथ, करने से विशेष लाभ होता है। बहुत पुराने वात रोग के प्रभाव से जब रोगी उठने बैठने तथा चलने फिरने में कमज़ोरी का अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में इस योग का सेवन करने शरीर के कायाकल्प होने जैसा लाभ होता है।

विटामिन डी

स्रोत- सूर्य की किरणें, मलाई युक्त दूध, घी, मख्खन, पनीर और होल मिल्क पाउडर । गुण व उपयोग-हड्डी का उचित विकास कर मज़बूत करना, शरीर का समुचित विकास

करना, कद बढ़ाना, दांतों को सुन्दर व मज़बूत रखना, अस्थि क्षय को रोकना, हृदय व मांस पेशियों के संकोचन और रक्त संचार को सन्तुलित एवं व्यवस्थित रखना।

अभाव के लक्षण- बच्चों को सूखा रोग होना, शरीर दुबला व हड्डियां कमजोर होना, शरीर की हड्डियों व दांतों का समुचित विकास न होने से कुरूप होना, बाल झड़ना व सफेद

होना, शरीर का रंग पीला पड़ना, रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी होना। रक्त की कमी (एनीमिया) होने तथा वात नाडी संस्थान में कमजोरी होने पर बार-बार चक्कर आना, मानसिक स्थिति बिगड़ने, स्मरणशक्ति कमजोर होना, प्रलाप करना, भूल जाने की आदत पड़ना आदि लक्षणों के पैदा होने पर इस योग का सेवन करने से थोड़े ही दिनों में लाभ हो जाता है।

शराब पीने के आदी लोगों के जीर्ण वात रोग और जीर्ण पक्षाघात (पुराना लकवा) की स्थिति में अन्य औषधियों की अपेक्षा यह योग और योगेन्द्र रस विशेष लाभप्रद सिद्ध होते हैं। इस योग में चांदी की भस्म होने से यह योग वृक्क स्थान और मस्तिष्क पर विशेष रूप से शामक कार्य करता है क्योंकि योगेन्द्र रस रक्त को शुद्ध करने तथा हृदय को बल देने की कार्यवाही करने का विशेष गुण रखता है।

ग्रीष्म ऋतु में और गर्म मुल्क के रोगों तथा पित्त प्रधान प्रकृति वालों को वात प्रकोप होने से मस्तिष्क में पीड़ा होना, बेचैनी, उदासी, घबराहट, हाथ पैरों में झुनझुनी आना और बेजान सा होना, कभी-कभी हलका दर्द होना, कमर दर्द होना, खट्टी डकार आना, पेट में गैस (वायु) की गडगडाहट होना, कब्ज (मलावरोध) होना, मुंह में छाले होना, पेट व छाती में जलन का अनुभव होना, मल में बहुत तीखी दुर्गन्ध होना आदि लक्षण दिखाई देने पर इस योग का सेवन करने से तुरन्त लाभ होता है । उपदंश के कीटाणु या सुजाक के कीटाणुओं के विष प्रकोप से वात वाहिनियों की विकृति होने से नपुंसकता आई हो तो इस योग के सेवन से नपुंसकता दूर हो जाती है।

छात्र छात्रा, वकील, अध्यापक, जज, इंजीनियर, डॉक्टर आदि तथा अन्य मानसिक श्रम करने वालों के लिए यह योग बहुत ही गुणकारी और हितकारी महौषधि है। अधिक मानसिक श्रम करने से ओज (साइकिक इनर्जी) का क्षय होता है जिससे दिमागी कमजोरी, चक्कर आना, याददाश्त कमजोर हो जाना, सिर दर्द, आलस्य, शिथिलता, बुझा-बुझा सा रहता, उदासी, हाथ पैरों में खिंचाव व दर्द होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। इस योग के सेवन से, ये सभी लक्षण धीरे धीरे गायब हो जाते हैं, मुखमण्डल और पूरा व्यक्तित्व ओजस्वी हो जाता है, मन में उत्साह और शरीर में जोश भरा रहता याददाश्त अच्छी हो जाती है इसलिए मानसिक श्रम के बल पर आजीविका अर्जित करने वाले स्त्री-पुरुषों के लिए यह योग अमृत के समान है। इस योग का सेवन २ चम्मच सारस्वतारिष्ट के साथ लाभ न होने तक सुबह शाम करना चाहिए।

इस योग का इतना उत्तम और गुणकारी होना इसके कुछ घटक द्रव्यों के कारण है। सुवर्ण भस्म सेन्द्रिय (टॉक्सिक) विषनाशक, वात केन्द्र पोषक, हृदय को बल देने वाली, रक्त को शुद्ध करने वाली और बलवीर्यवर्द्धक है। चांदी भस्म मांस पेशियों और वातवाहिनियों की विकृति को दूर करती है तथा हृदय को शक्ति देती है । लौह भस्म रक्त को पुष्ट करने वाली तथा हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाली है जो रक्ताणु और रक्ताभिसरण क्रिया-दोनों को बढ़ाने का परिणाम होता है। प्रवाल और मौक्तिक भस्म विषनाशक, हड्डियों को शक्ति देने वाली और पित्त प्रकोप का शमन करती है। रस सिन्दूर विषनाशक, हृदय को पुष्ट करने वाला और वात शामक होता है। ग्वारपाठे का रस आमाशय और आंतों के विष का नाश करने में सहायता करता है।

इस प्रकार, के विवरण से यह सिद्ध हो जाता है कि वृहत वात चिंतामणि रस एक उत्तम और शरीर को कई प्रकार से शक्ति देने वाला और वात प्रकोप को शान्त कर समस्त वातजन्य विकारों को नष्ट कर शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा व वृद्धि करने वाला श्रेष्ठ आयुर्वेदिक योग है। यह योग इसी नाम से बना-बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता की दुकान पर मिलता है।

विटामिन इ

स्रोत- अंकुरित अन्न, हरी शाक सब्ज़ी, वनस्पति तेल, दूध, अनाज, पत्ता गोभी, प्याज, लहसुन,

सेब, केला, शहद, गाजर, काहू, शुक्रवर्द्धक पदार्थ और मूंगफली का तैल आदि। गुण व उपयोग- शरीर में पौरुष बल, शुक्र बल, और प्रजनन शक्ति उत्पन्न करना, हृदय को

बल देना, गर्भ धारण करने की क्षमता देना, चेहरे पर ओज व कान्ति बनाए रखना, गर्भ की रक्षा कर उसका समुचित विकास करना।

अभाव के लक्षण- पुरुषों में नामर्दी, स्त्रियों में बांझपन, शुक्राणुओं की कमी या अभाव होना, गर्भ न ठहरना या गर्भपात होना, जननेन्द्रिय छोटे आकार की होना, हृदय रोग व यौन दौर्बल्य व विकार होना, शरीर का ढांचा कमजोर

Buy Heater here
https://amzn.to/34M1JBS

Previous articleदयालु और बुद्धिमान विट्ठल की कहानी
Next articleकाली मिर्ची (black paper) के फायदे और नुकसान एवं विभिन्न जानकारी
Alok kumar is an Indian content creator who is currently working with many world wide known bloggers to help theme deliver the very useful and relevant content with simplest ways possible to their visitors.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here